गायत्री मन्त्र की सम्पूर्ण व्याख्या
---: गायत्री मन्त्र की व्याख्या :---
गायत्री महामन्त्र वेदों का एक महत्त्वपूर्ण मन्त्र है मान्यता है कि गायत्री मन्त्र की महत्ता ॐ के बराबर है। यह यजुर्वेद के मन्त्र 'ॐ भूर्भुवः स्वः' और ऋग्वेद के छन्द के मेल से बना है। इस मन्त्र में सवित्र की उपासना की गयी है इसलिए इसे सावित्री भी कहा जाता है। ऐसा माना जाता है कि इस मन्त्र के उच्चारण और समझने से ईश्वर की प्राप्ति होती है।
"गायत्री मन्त्र" एक छन्द भी है जो ऋग्वेद के सात प्रसिद्ध छंदों में से एक है। इन सात छंदों के नाम हैं- गायत्री, उष्णिक, अनुष्टुप, बृहती, विराट, त्रिष्टुप और जगती। गायत्री छन्द में आठ-आठ अक्षरों के तीन चरण होते हैं कुल मिलाकर 24 चरण होते हैं। ऋग्वेद के मन्त्र में त्रिष्टुप को छोड़कर सबसे अधिक संख्या गायत्री छंद की है। गायत्री के तीन पद होते हैं (त्रिपदा वै गायत्री)। जब छंद या वाक के रूप में सृष्टि के प्रतीक की कल्पना की जाने लगी तब इस विश्व को त्रिपदा गायत्री का स्वरूप माना गया। जब गायत्री के रूप में जीवन की प्रतीकात्मक व्याख्या होने लगी तब गायत्री छंद की बढ़ती हुई महिता के अनुरूप विशेष मन्त्र की रचना हुई, जो कि "गायत्री मन्त्र" है।
शास्त्रों के अनुसार
शास्त्रों में कहा गया है कि सृष्टिकर्ता ब्रह्मा जी को आकाशवाणी द्वारा गायत्री मन्त्र प्राप्त हुआ था। गायत्री मन्त्र का जप करके ही ब्रह्मा जी को सृष्टि निर्माण करने की शक्ति प्राप्त हुई। गायत्री माता के चार चरणों की व्याख्या स्वरूप ही ब्रह्मा जी ने चार मुखों से चार वेदों का वर्णन किया। चारों वेद, गायत्री की व्याख्या मात्र हैं। शास्त्रों के अनुसार गायत्री मन्त्र वेदों में सर्वश्रेष्ठ मन्त्र बताया गया है।
---: गायत्री मन्त्र :---
ऊँ भूर्भुव: स्व: तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो न: प्रचोदयात्।
---: गायत्री मन्त्र का शाब्दिक अर्थ :---
ॐ - प्रणव
भूर - मनुष्य को प्राण शक्ति देने वाला
भुव: - समस्त दुखों को समाप्त करने वाला
स्व:- समस्त सुखों का दाता
तत - वह
वरेण्यं - सर्वोत्तम
सवितुर - सूर्य के समान उज्ज्वल
धीमहि - ध्यान के योग्य
भर्गो - समस्त कर्मों से उद्धार करने वाला
देवस्य - प्रभु का
प्रचोदयात - हमें शक्ति प्रदान करें
धियो - बुद्धि
यो - जो
न: - हमारी,
---: अर्थात :---
हम उस प्राणस्वरूप, दुखनाशक, सुखस्वरूप, श्रेष्ठ, प्रेरक, तेजस्वी एवं देवस्वरूप परमात्मा को अंतरात्मा में धारण करें और वह हमारी बुद्धि को शुभ कार्यों में लगाए और सन्मार्ग की ओर प्रेरित करें।
गायत्री मन्त्र जप का उचित समय
गायत्री मन्त्र जप के तीन समय हैं। गायत्री मन्त्र के जप का पहला समय है प्रात:काल, सूर्योदय से थोड़ी देर पहले मन्त्र जप शुरू किया जाना चाहिए। जप सूर्योदय के पश्चात तक करना चाहिए। मन्त्र जप के लिए दूसरा समय है दोपहर मध्यान्ह का। दोपहर में भी इस मन्त्र का जप किया जाता है। इसके बाद तीसरा समय है शाम को सूर्यास्त के कुछ देर पहले मन्त्र जप शुरू करके सूर्यास्त के कुछ देर बाद तक जप करना चाहिए। इन तीन समय के अतिरिक्त यदि गायत्री मन्त्र का जप करना हो तो मौन रहकर या मानसिक रूप से जप करना चाहिए। मन्त्र जप अधिक तेज आवाज में नहीं करना चाहिए।
गायत्री मन्त्र जप के लाभ :-
गायत्री मन्त्र का जाप करने से उत्साह एवं सकारात्मकता बढ़ती है और आपकी त्वचा में चमक आती है, तामसिकता से घृणा होती है, और परमार्थ में रूचि होती है, पूर्वानुभास होने लगता है, आशीर्वाद देने की शक्ति बढ़ती है, नेत्रों में तेज आता है, स्वप्न सिद्ध प्राप्त होती हैं, क्रोध शांत होता है, ज्ञान की वृद्धि होती है।
रोग से मिलती है मुक्ति:-
यदि आप किसी भी प्रकार के रोग से परेशान हैं और रोग से मुक्ति पाना चाहते हैं तो किसी भी शुभ मुहूर्त में एक कांसे के पात्र में स्वच्छ जल भरकर रख लें एवं उसके सामने लाल आसन पर बैठकर गायत्री मन्त्र के साथ "ऐं ह्रीं क्लीं" का संपुट लगाकर गायत्री मन्त्र का जप करें। जप के पश्चात जल से भरे पात्र का सेवन करने से गंभीर से गंभीर रोग का नाश होता है। यही जल किसी अन्य रोगी को पिलाने से उसके भी रोगों का नाश होता हैं।
दरिद्रता दूर होती है:-
यदि किसी व्यक्ति के व्यापार, नौकरी में हानि हो रही है या कार्य में सफलता नहीं मिलती, आमदनी कम है तथा व्यय अधिक है तो उन्हें गायत्री मन्त्र का जप काफी फायदा पहुंचाता है। शुक्रवार को पीले वस्त्र धारण कर हाथी पर विराजमान गायत्री माता का ध्यान करके गायत्री मन्त्र के आगे और पीछे "श्रीं बीज मन्त्र" का सम्पुट लगाकर जप करने से दरिद्रता का नाश होता है। इसके साथ ही रविवार को व्रत किया जाए तो वह और भी ज्यादा लाभप्रद होता है।
विद्या प्राप्त होती है:-
गायत्री मन्त्र का जप सभी के लिए उपयोगी है किंतु विद्यार्थियों के लिए तो यह मन्त्र वरदान है। रोजाना इस मन्त्र का एक सौ आठ बार जप करने से विद्यार्थी को सभी प्रकार की विद्या प्राप्त करने में सरलता होती है। विद्यार्थियों को पढऩे में मन नहीं लगना, याद किया हुआ भूल जाना, शीघ्रता से याद न होना आदि समस्याओं से निजात मिल जाता है।
सन्तान सुख की प्राप्ति होती है:-
यदि किसी दंपत्ति को सन्तान प्राप्ति में किसी भी प्रकार की कठिनाई आ रही है या सन्तान दुखी हो अथवा संतान रोगग्रस्त हो तो प्रात: पति-पत्नी एक साथ सफेद वस्त्र धारण कर "यौं बीज मन्त्र" का सम्पुट लगाकर गायत्री मन्त्र की उपासना करें। सन्तान संबंधी किसी भी समस्या से शीघ्र मुक्ति मिलती है।
शत्रुओं पर विजय प्राप्त होती है:-
यदि कोई व्यक्ति शत्रुओं के कारण परेशानियां झेल रहा है तो उसे प्रतिदिन या विशेषकर मंगलवार, अमावस्या अथवा रविवार को लाल वस्त्र पहनकर माता दुर्गा का ध्यान करते हुए गायत्री मन्त्र के आगे एवं पीछे "क्लीं बीज मन्त्र" का तीन बार सम्पुट लगाकार एक सौ आठ बार जाप करने से शत्रुओं पर विजय प्राप्त होती है। मित्रों में सद्भाव, परिवार में एकता उत्पन्न होती है तथा न्यायालयों आदि कार्यों में भी विजय प्राप्त होती है।
विवाह कार्य में आ रही अड़चनें दूर होती है:-
यदि किसी भी जातक के विवाह में अनावश्यक देरी हो रही है तो सोमवार को सुबह के समय पीले वस्त्र धारण कर, माता पार्वती का ध्यान करते हुए "ह्रीं" बीज मन्त्र का सम्पुट लगाकर एक सौ आठ बार जाप करने से विवाह कार्य में आने वाली समस्त बाधाएं दूर होती हैं। यह साधना स्त्री पुरुष दोनों कर सकते हैं।