क्या है वास्तुशास्त्र, इससे आप लाभ कैसे प्राप्त कर सकते हैं।
वास्तुशास्त्र किसी निर्माण से सम्बंधित चीज़ों के अच्छे बुरें फल को बताता है. यह किसी निर्माण के कारण होने वाली समस्याओं के कारण और निवारण को भी बताता है तथा यह भूमि, दिशाओं और ऊर्जा के सिद्धांत पर कार्य करता है, इसमें भी पांच तत्वों को संतुलित रखने का सिद्धांत कार्य करता है. यह एक प्राचीन विद्या है, जिसको वर्तमान के आधार पर समझना जरूरी है।
वास्तुशास्त्र के प्रयोग में किन सावधानियों को समझना चाहिए?
- वास्तुशास्त्र को समझने के लिए कुण्डली का अध्ययन अवश्य करवाना चाहिए।
- तभी जाकर इसके सही परिणाम मिलते हैं।
- भूमि पर बने हुए मकान और फ्लैट के अंतर को भी समझना चाहिए।
- दोनों के वास्तु के सिद्धांत बहुत अलग होते हैं।
- इसके अलावा घर के रंग पर भी ध्यान देना आवश्यक होता है।
- साथ ही साथ घर में रहने वाले लोग कैसे हैं यह भी समझना अत्यधिक आवश्यक होगा
- आप अपने घर में वास्तु यन्त्र अवश्य लगायें।
घर के वास्तुशास्त्र में किन बातों का ख्याल रखें?
- घर की मुख्य दिशा पर ध्यान जरूर दें।
- सूर्य के प्रकाश पर भी ध्यान देना आवश्यक होगा।
- घर के मुखिया के साथ घर के वास्तु का तालमेल देखना चाहिए।
- घर में अगर कुछ गड़बड़ है तो उसे रंगों के माध्यम से ठीक करें।
- घर के पूजा स्थान और सीढ़ी का ख़ास ख्याल रखें।
- घर में नियमित रूप से पूजा, धूप, आरती व उपासना अवश्य करें।
फ्लैट के वास्तुशास्त्र में किन बातों का ध्यान देना आवश्यक होगा?
- फ्लैट में दिशा का कोई मतलब नहीं होता है।
- इसमें सूर्य के प्रकाश और हवा का ध्यान जरूर दें।
- घर के रंगों का भी विशेष ध्यान देना ठीक रहेगा।
- घर में पूजा स्थान को जागृत रखना जरूरी होगा।
- घर के प्रवेश द्वार को आकर्षक बनायें।
उत्तर, दक्षिण, पूरब और पश्चिम ये चार मूल दिशाएं हैं। वास्तु विज्ञान में इन चार दिशाओं के अलावा 4 विदिशाएं हैं। आकाश और पाताल को भी इसमें दिशा स्वरूप शामिल किया गया है। इस प्रकार चार दिशा, चार विदिशा और आकाश पाताल को जोड़कर इस विज्ञान में दिशाओं की संख्या कुल दस माना गया है। मूल दिशाओं के मध्य की दिशा ईशान, आग्नेय, नैऋत्य और वायव्य को विदिशा कहा गया है।
वास्तुशास्त्र में पूर्व दिशा
वास्तुशास्त्र में यह दिशा बहुत ही महत्वपूर्ण मानी गई है क्योंकि यह सूर्य के उदय होने की दिशा है। इस दिशा के स्वामी देवता इन्द्र हैं। भवन बनाते समय इस दिशा को सबसे अधिक खुला रखना चाहिए। यह सुख और समृद्धि कारक होता है। इस दिशा में वास्तुदोष होने पर घर भवन में रहने वाले लोग बीमार रहते हैं। परेशानी और चिन्ता बनी रहती हैं। उन्नति के मार्ग में भी बाधा आती है।
वास्तुशास्त्र में आग्नेय दिशा
पूर्व और दक्षिण के मध्य की दिशा को आग्नेश दिशा कहते हैं। अग्निदेव इस दिशा के स्वामी हैं। इस दिशा में वास्तुदोष होने पर घर का वातावरण अशांत और तनावपूर्ण रहता है। धन की हानि होती है। मानसिक परेशानी और चिन्ता बनी रहती है। यह दिशा शुभ होने पर भवन में रहने वाले उर्जावान और स्वास्थ रहते हैं। इस दिशा में रसोईघर का निर्माण वास्तु की दृष्टि से श्रेष्ठ होता है। अग्नि से सम्बन्धित सभी कार्य के लिए यह दिशा शुभ होता है।
वास्तुशास्त्र में दक्षिण दिशा
इस दिशा के स्वामी यम देव हैं। यह दिशा वास्तुशास्त्र में सुख और समृद्धि का प्रतीक होता है। इस दिशा को खाली नहीं रखना चाहिए। दक्षिण दिशा में वास्तु दोष होने पर मान सम्मान में कमी एवं रोजगार में परेशानी का सामना करना होता है। गृहस्वामी के निवास के लिए यह दिशा सर्वाधिक उपयुक्त होता है।
वास्तुशास्त्र में नैऋत्य दिशा
दक्षिण और पश्चिम के मध्य की दिशा को नैऋत्य दिशा कहते हैं। इस दिशा का वास्तुदोष दुर्घटना, रोग एवं मानसिक अशांति देता है। यह आचरण एवं व्यवहार को भी दूषित करता है। भवन निर्माण करते समय इस दिशा को भारी रखना चाहिए। इस दिशा का स्वामी राक्षस है। यह दिशा वास्तु दोष से मुक्त होने पर भवन में रहने वाला व्यक्ति सेहतमंद रहते है एवं उसके मान सम्मान में भी वृद्धि होती है।
वास्तुशास्त्र में ईशान दिशा
ईशान दिशा के स्वामी शिव होते है, इस दिशा में कभी भी शौचालय कभी नहीं बनना चाहिये,और नलकुप, कुआ आदि इस दिशा में बनाने से जल प्रचुर मात्रा में प्राप्त होता है।