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श्री सूक्त पाठ

श्री सूक्त पाठ

सुख समृद्धि से भर जाता है घर करें श्रीसूक्त के मंत्रों का पाठ



माता लक्ष्मी अपने भक्तों की धन से जुड़ी सभी तरह की समस्याएं दूर करती हैं। इतना ही नहीं, देवी लक्ष्मी साधकों को यश एवं कीर्ति भी प्रदान करती हैं। लक्ष्मी जी की पूजा करने से धन की प्राप्ति होती है, साथ ही यश भी मिलता है। धन वह वस्तु जिसके लिए व्यक्ति दिन रात बहुत परिश्रम करता है।

लक्ष्मी माता को स्मरण करने हेतु श्री सूक्त पाठ करना चाहिए, श्री सूक्त को ‘लक्ष्मी सूक्तम्’ भी कहा जाता है। यह सूक्त ऋग्वेद से लिया गया है। इस सूक्त का पाठ धन की देवी लक्ष्मी की कृपा प्राप्ति के लिए किया जाता है। श्रीसूक्त में सोलह मन्त्र हैं। यदि इन मन्त्र का जप पूर्ण श्रद्धा से किया जाये तो देवी लक्ष्मी उन पर कृपा बरसाती हैं।

जो जातक अपने जीवन में हर तरह से सुख भोगना चाहते हैं, जीवन से गरीबी दूर करना चाहते हैं। एश्वर्य की प्राप्ति करना चाहते हैं तो उन्हें लक्ष्मी जी के श्री सूक्त के पाठ को अवश्य ही करना चाहिए।

---: श्री सूक्त का पाठ कैसे करें :---
कहा जाता है कि श्री सूक्त का पाठ भक्तों को हर दिवस करना चाहिए, परन्तु समय का अभाव में व्यक्ति इस पाठ को करने में असमर्थ रहता है, हर शुक्रवार या अष्टमी तिथि को भी श्रीसूक्त का पाठ कर सकते हैं। शुक्रवार माँ लक्ष्मी का दिन होता है। लक्ष्मी जी का प्रिय वार शुक्रवार को बताया गया है, अत: श्रीसूक्त का पाठ आप शुक्रवार एवं अष्टमी से शुरू कर सकते है। यदि आप इस नियम से पाठ प्रारम्भ नही कर पाए तो फिर आप अमावस्या और पूर्णिमा से यह प्रारम्भ कर सकते हैं।

माँ लक्ष्मी जी की फोटो या मूर्ति को एक चौकी पर लाल रेशमी कपडे को बिछा कर उस पर माता जी को बैठाएँ। इन्हे लाल पुष्पों की माला पहनायेँ, और खीर का भोग लगाएं। पूजा में पंचोपचार या षोडशोपचार पूजन विधि से करें। अब श्रीसूक्त का पाठ करें। पाठ समाप्ति पर माता लक्ष्मी की आरती उतारें। आप संस्कृत में ही श्रीसूक्त का पाठ करें। महालक्ष्मी व्रत, दीपावली पर यह पाठ करना अत्यन्त शुभ बताया गया है।

---: श्रीसूक्त पाठ :---
ॐ हिरण्यवर्णां हरिणीं सुवर्णरजतस्रजाम् ।
चन्द्रां हिरण्मयीं लक्ष्मीं जातवेदो म आ वह ॥1॥

अर्थात: आप मुझे सुवर्ण के समान पीतवर्ण वाली तथा किंचित हरितवर्ण वाली तथा हरिणी रूपधारिणी स्वर्ण मिश्रित रजत की माला धारण करने वाली, चाँदी के समान श्वेत पुष्पों की माला धारण करने वाली, चन्द्रमा की तरह प्रकाशमान तथा चन्द्रमा की तरह संसार को प्रसन्न करने वाली अथवा चंचला के सामान रूपवाली ये हिरण्मय ही जिसका शरीर है ऐसे गुणों से युक्त लक्ष्मी जी को मेरे लिए बुलाइये। ( इस मन्त्र के प्रभाव से स्वर्ण रजत की प्राप्ति होती है। )

तां म आ वह जातवेदो लक्ष्मीमनपगामिनीम् ।
यस्यां हिरण्यं विन्देयं गामश्वं पुरुषानहम् ॥2॥

अर्थात: आप मेरे लिए उन जगत प्रसिद्ध लक्ष्मी जी को बुलाओ जिनके आवाहन करने पर मै समस्त ऐश्वर्य जैसे स्वर्ण ,गौ, अश्व और पुत्र पौत्रादि को प्राप्त करूँ। ( इस मन्त्र के जप से गौ, अश्व आदि की प्राप्ति होती है। )

अश्वपूर्वां रथमध्यां हस्तिनादप्रमोदिनीम् ।
श्रियं देवीमुप ह्वये श्रीर्मा देवी जुषताम् ॥3॥

अर्थात: जिस देवी के आगे और मध्य में रथ है अथवा जिसके सम्मुख घोड़े रथ से जुते हुए हैं ,ऐसे रथ में बैठी हुई , हाथियों की निनाद सम्पूर्ण संसार को प्रफुल्लित करने वाली देदीप्यमान एवं समस्त जनों को आश्रय देने वाली माँ लक्ष्मी को मैं अपने सम्मुख बुलाता हूँ। ऐसी सबकी आश्रयदाता माता लक्ष्मी मेरे घर में सदैव निवास करें। ( इस मन्त्र के शुभ प्रभाव से बहुमूल्य रत्नों की प्राप्ति होती है। )

कां सोस्मितां हिरण्यप्राकारामार्द्रां ज्वलन्तीं तृप्तां तर्पयन्तीम् ।
पद्मेस्थितां पद्मवर्णां तामिहोप ह्वये श्रियम् ॥4॥

अर्थात: जिस देवी का स्वरूप, वाणी और मन का विषय न होने के कारण अवर्णनीय है तथा जिसके अधरों पर सदैव मुस्कान रहती है, जो चारों ओर सुवर्ण से ओत-प्रोत है एवं दया से आर्द्र ह्रदय वाली देदीप्यमान हैं। स्वयं पूर्णकाम होने के कारण भक्तो के नाना प्रकार के मनोरथों को पूर्ण करने वाली, कमल के ऊपर विराजमान ,कमल के सद्रश गृह मैं निवास करने वाली संसार प्रसिद्ध धन दात्री माँ लक्ष्मी को मैं अपने पास बुलाता हूँ। ( इस मन्त्र के दिव्य प्रभाव से मां लक्ष्मी की कृपा दृष्टि एवं संपत्ति की प्राप्ति होती है।)

चन्द्रां प्रभासां यशसा ज्वलन्तीं श्रियं लोके देवजुष्टामुदाराम् ।
तां पद्मिनीमीं शरणं प्र पद्ये अलक्ष्मीर्मे नश्यतां त्वां वृणे ॥5॥

अर्थात: चन्द्रमा के समान प्रकाश वाली प्रकृट कान्तिवाली , अपनी कीर्ति से देदीप्यमान , स्वर्ग लोक में इन्द्र और समस्त देवों से पूजित अत्यंत उदार, दानशीला ,कमल के मध्य रहने वाली, सभी की रक्षा करने वाली एवं अश्रयदात्री ,जगद्विख्यात उन लक्ष्मी को मैं प्राप्त करता हूँ। अतः मैं आपका आश्रय लेता हूँ । हे माता आपकी कृपा से मेरी दरिद्रता नष्ट हो। ( इस मन्त्र के जप से दरिद्रता का नाश होता है, धन की कोई भी कमी नहीं होती है।)

आदित्यवर्णे तपसोऽधि जातो वनस्पतिस्तव वृक्षोऽथ बिल्वः ।
तस्य फलानि तपसा नुदन्तु या अन्तरा याश्च बाह्या अलक्ष्मीः ॥6॥

अर्थात: हे सूर्य के समान कांति वाली देवी आपके तेजोमय प्रकाश से बिना पुष्प के फल देने वाला एक विशेष बिल्ब वृक्ष उत्पन्न हुआ है । उस बिल्व वृक्ष का फल मेरे बाह्य और आभ्यन्तर की दरिद्रता को नष्ट करें। ( इस मन्त्र का पाठ करने से लक्ष्मी जी की विशेष कृपा मिलती है। )

उपैतु मां देवसखः कीर्तिश्च मणिना सह ।
प्रादुर्भूतोऽस्मि राष्ट्रेऽस्मिन् कीर्तिमृद्धिं ददातु मे ॥7॥

अर्थात: हे लक्ष्मी ! देव सखा कुवेर और उनके मित्र मणिभद्र तथा दक्ष प्रजापति की कन्या कीर्ति मुझे प्राप्त हो अर्थात इस संसार में धन और यश दोनों ही मुझे प्राप्त हों। अतः हे लक्ष्मी आप मुझे धन यश और ऐश्वर्य प्रदान करें।

क्षुत्पिपासामलां ज्येष्ठामलक्ष्मीं नाशयाम्यहम् ।
अभूतिमसमृद्धिं च सर्वां निर्णुद मे गृहात् ॥8॥

अर्थात: भूख एवं प्यास रूप मल को धारण करने वाली एवं लक्ष्मी की ज्येष्ठ भगिनी अलक्ष्मी (दरिद्रता) का मैं नाश करता हूँ अर्थात दूर करता हूँ। हे लक्ष्मी आप मेरे घर में अनैश्वर्य, वैभवहीनता तथा धन वृद्धि के प्रतिबन्धक विघ्नों को दूर करें। (इस मन्त्र के प्रभाव से सम्पूर्ण परिवार की दरिद्रता दूर होती है।)

गन्धद्वारां दुराधर्षां नित्यपुष्टां करीषिणीम् ।
ईश्वरीं सर्वभूतानां तामिहोप ह्वये श्रियम् ॥9॥

अर्थात: सुगन्धित पुष्प के समर्पण करने से प्राप्त करने योग्य, किसी से भी न दबने योग्य धन धान्य से सर्वदा पूर्ण कर समृद्धि देने वाली , समस्त प्राणियों की स्वामिनी तथा संसार प्रसिद्ध लक्ष्मी को मैं अपने घर परिवार में सादर आह्वान करता हूँ। ( श्री सूक्त के इस मन्त्र के शुभ प्रभाव से माँ लक्ष्मी प्रसन्न होती है, स्थिर सुख समृद्धि प्राप्त होती है । )

मनसः काममाकूतिं वाचः सत्यमशीमहि ।
पशूनां रूपमन्नस्य मयि श्रीः श्रयतां यशः ॥10॥

अर्थात: हे लक्ष्मी ! मैं आपके प्रभाव से मानसिक इच्छा एवं संकल्प। वाणी की सत्यता,गौ आदि पशुओ के रूप (अर्थात दुग्ध-दधि आदि ) एवं समस्त अन्नों के रूप इन सभी पदार्थो को प्राप्त करूँ। सम्पति और यश मुझमे आश्रय ले अर्थात मैं लक्ष्मीवान एवं कीर्तिमान बनूँ। (इस मन्त्र के पाठ से अन्न, धन, यश, मान की प्राप्ति होती है।)

कर्दमेन प्रजा भूता मयि सम्भव कर्दम ।
श्रियं वासय मे कुले मातरं पद्ममालिनीम् ॥11॥

अर्थात: “कर्दम “नामक ऋषि-पुत्र से लक्ष्मी प्रकृष्ट पुत्र वाली हुई है। हे कर्दम !! आप मुझमें अच्छी प्रकार से निवास करो अर्थात कर्दम ऋषि की कृपा होने पर लक्ष्मी को मेरे यहाँ रहना ही होगा। हे कर्दम ! केवल यही नहीं अपितु कमल की माला धारण करने वाली संपूर्ण संसार की माता लक्ष्मी को मेरे घर में निवास कराएं । (इस मन्त्र के प्रभाव से संपूर्ण संपत्ति प्राप्ति होती है।)

आपः सृजन्तु स्निग्धानि चिक्लीत वस मे गृहे ।
नि च देवीं मातरं श्रियं वासय मे कुले ॥12॥

अर्थात: जिस प्रकार कर्दम की संतति ‘ख्याति ‘से लक्ष्मी अवतरित हुई उसी प्रकार समुद्र मंथन में चौदह रत्नों के साथ लक्ष्मी का भी आविर्भाव हुआ है। इसी लिए कहा गया है कि हे जल के देव वरुण देवता आप मनोहर पदार्थो को उत्पन्न करें। माता लक्ष्मी के आनंद, कर्दम ,चिक्लीत और श्रीत ये चार पुत्र हैं। इनमे ‘चिक्लीत ‘ से प्रार्थना की गई है कि हे चिक्लीत नामक लक्ष्मी पुत्र ! आप मेरे गृह में निवास करो। केवल तुम ही नहीं वरन दिव्यगुण युक्त सबको आश्रय देने वाली अपनी माता लक्ष्मी को भी मेरे घर में निवास कराओ। (इस मन्त्र का पाठ करने से माँ लक्ष्मी कभी भी साथ नहीं छोड़ती है।)

आर्द्रां पुष्करिणीं पुष्टिं पिङ्गलां पद्ममालिनीम् ।
चन्द्रां हिरण्मयीं लक्ष्मीं जातवेदो म आ वह ॥13॥

अर्थात: हे अग्निदेव ! आप मेरे घर में पुष्करिणी अर्थात दिग्गजों (हाथियों ) के सूंडग्रा से अभिषिच्यमाना (आर्द्र शारीर वाली) पुष्टि को देने वाली अथवा पीत वर्ण वाली, कमल की माला धारण करने वाली, चन्द्रमा के समान सम्पूर्ण जगत को प्रकाशित करने वाली प्रकाश स्वरुप, शुभ्र कांति से युक्त, स्वर्णमयी लक्ष्मी देवी को बुलाओ। (इस मन्त्र के प्रभाव से तेज बढ़ता है, सुख– समृद्धि की प्राप्ति होती है)

आर्द्रां यः करिणीं यष्टिं सुवर्णां हेममालिनीम् ।
सूर्यां हिरण्मयीं लक्ष्मीं जातवेदो म आ वह ॥14॥

अर्थात: हे अग्निदेव ! तुम मेरे घर में भक्तों पर सदा दयार्द्रचित अथवा समस्त भुवन जिसकी याचना करते हैं, दुष्टो को दंड देने वाली अथवा यष्टिवत् अवलम्बनीया (जिस प्रकार लकड़ी के बिना असमर्थ पुरुष चल नहीं सकता, उसी प्रकार लक्ष्मी के बिना भी इस संसार में कोई भी कार्य नहीं चल सकता, अर्थात लक्ष्मी से सम्पन्न मनुष्य हर तरह से समर्थ हो जाता है) सुन्दर वर्ण वाली एवं सुवर्ण कि माला वाली सूर्यरूपा अतः प्रकाश स्वरूपा लक्ष्मी को बुलाओ। (इस मन्त्र के प्रभाव से धन-संपत्ति एवं वंश की वृद्धि होती है)

तां म आ वह जातवेदो लक्ष्मीमनपगामिनीम् ।
यस्यां हिरण्यं प्रभूतं गावो दास्योऽश्वान् विन्देयं पुरुषानहम् ॥१५॥

अर्थात: हे अग्निदेव ! तुम मेरे यहाँ उन सम्पूर्ण जगत में विख्यात लक्ष्मी को जो मुझे छोड़कर अन्यत्र ना जाएँ, बुलाएँ। जिन लक्ष्मी के द्वारा मैं सुवर्ण, उत्तम ऐश्वर्य, गौ, दासी, घोड़े और पुत्र-पौत्रादि को प्राप्त करूँ अर्थात स्थिर लक्ष्मी को प्राप्त करूँ ऐसी लक्ष्मी मेरे घर में निवास करें। (इस मन्त्र के शुभ प्रभाव से अचल संपत्ति की प्राप्ति होती है)

यः शुचिः प्रयतो भूत्वा जुहुयादाज्यमन्वहम् ।
सूक्तं पञ्चदशर्चं च श्रीकामः सततं जपेत् ॥१६॥

अर्थात: जो मनुष्य सुख-समृद्धि अतुल लक्ष्मी कि कामना करता हो ,वह पवित्र और सावधान होकर प्रतिदिन अग्नि में गौघृत का हवन और साथ ही श्रीसूक्त कि पंद्रह ऋचाओं का प्रतिदिन पाठ करें। इससे उस पर माँ लक्ष्मी की सदैव कृपा बनी रहती है। (जो पूर्ण श्रद्धा से नित्य श्री सूक्त का पाठ करता है उसे इस संसार में किसी भी वस्तु का अभाव नहीं रहता है)