कालसर्प दोष
कालसर्प योग क्या है और समाधान क्या है?
क्या है कालसर्प योग ?
कालसर्प योग का नाम सुनते ही मन में अजीब सा डर बैठ जाता है। इस दोष से पीड़ित जातक जीवन में कई प्रकार के उतार-चढ़ाव देखते रहते हैं। जातक महत्वाकांक्षी होते हुए भी पूर्ण सफलता से वंचित रह जाता है। यदि आप कालसर्प योग से पीड़ित हैं तो नागपंचमी सर्वश्रेष्ठ दिन है जो इस पीड़ा से आपको मुक्त करा सके है।
ज्योतिष शास्त्र के अनुसार कालसर्प योग व्यक्ति के जीवन में एक बड़ी रुकावट माना गया है। इस योग के कारण जीवन में बाधाएं आती रहती हैं। कालसर्प दोष के निवारण हेतु उपाय करने से सुखद परिणाम प्राप्त होने लगते हैं।
जन्म के समय ग्रहों की दशा में जब राहु और केतु आमने-सामने होते हैं और सारे ग्रह एक तरफ रहते हैं, तो उस काल को कालसर्प योग कहा जाता है। लोगों को कालसर्प योग से डरना नहीं चाहिए।
क्योंकि कालसर्प योग तो पं. जवाहर लाल नेहरू को भी था।
कालसर्प योग से डरना नहीं चाहिए:-
राहु व केतु के बीच सभी ग्रह आने पर कालसर्प योग का निर्माण होता है। हमारे प्राचीन ग्रंथों में राहु को काल और केतु को सर्प कहा गया है। मानसागरी ग्रंथ के चौथे अध्याय के 10 वें श्लोक में कहा गया है कि शनि, सूर्य व राहु लग्न में सप्तम स्थान पर होने पर सर्पदंश होता है।
जब हो कालसर्प योग, तब क्या करें, जानिए
कालसर्प योग से राहत पाने के लिए जातक को निम्न उपायों को आजमाने से उनका जीवन सुखमय व्यतीत होगा। इसके अलावा सामान्य जातक भी अपने कल्याण के लिए शिव गायत्री मंत्र जप कर सकता है।
जिस जातक के जीवन में कालसर्प योग के लक्षण हैं, वह नागपंचमी के दिन किसी भी शिव मन्दिर या नाग-नागिन के मन्दिर में चांदी, पंचधातु, तांबा या अष्ट धातु का नाग-नागिन का जोड़ा चढ़ा कर आएं।
नागपंचमी के दिन ही शिव मन्दिर में 1 माला शिव गायत्री मन्त्र का जाप (यथाशक्ति) करें एवं नाग-नागिन का जोड़ा चढ़ाएं तो पूर्ण लाभ प्राप्त होता है। नागपंचमी को चन्द्रमा की राशि कन्या होती है और राहु का स्वगृह कन्या राशि है। राहु के लिए प्रशस्त तिथि, नक्षत्र एवं स्वगृही राशि के कारण नागपंचमी सर्पजन्य दोषों की शांति के लिए उत्तम दिन माना जाता है। पंचमी तिथि को भगवान आशुतोष भी सुस्थानगत (अपने स्थान पर) होते हैं। इसलिए इस दिन कालसर्प दोष शांति के अंतर्गत राहु-केतु का जप, दान, हवन उपयुक्त होता है। अन्य दुर्योगों से बचने के लिए भगवान शिव का अभिषेक (रुद्राभिषेक), महामृत्युंजय मंत्र का जप, यज्ञ, शिव सहस्रनाम का पाठ या बेल पत्र से शिव सहस्रार्चन, गौ दान का भी विधान है।
"शिव गायत्री मन्त्र"
ॐ तत्पुरुषाय विद्महे महादेवाय धीमहि तन्नोरुद्र: प्रचोदयात्
नागपंचमी के अलावा और मुहूर्तों में भी कालसर्प दोष से मुक्ति के उपाय किए जा सकते हैं। विशेषकर सोमवार को शिवालय में जो व्यक्ति विधि - विधान से शिव गायत्री मन्त्र का जप करता है, तो उसे अवश्य ही श्रेष्ठ फल की प्राप्ति होती है।
"ध्यान देने योग्य बातें"
जब कुण्डली के भावों में सारे ग्रह यदि दाहिनी (अनुदित कालसर्प योग) ओर इकट्ठा हों तो यह कालसर्प योग हानिकारक नहीं होता है।
अगर जब सारे ग्रह बाईं (उदित कालसर्प योग) ओर इकट्ठा हों तो वह कालसर्प योग हानिकारक होता है।
लेकिन इससे भयभीत नहीं होना चाहिए। इसका निवारण ज्योतिष और धार्मिक अनुष्ठान से किया जा सकता है।