नवचंडी यज्ञ
नवचंडी यज्ञ करे आपके सभी दुखों का नाश
"नवचंडी यज्ञ का महत्व"
नवचंडी यज्ञ आप को देवी माँ का आशीर्वाद प्राप्त करने में सहायता करता है। यदि आपका भाग्य आपके पक्ष में नहीं हैं, तो उन्हें अपने पक्ष में कार्य करने हेतु सहायक है। एक बार नवचंडी यज्ञ को पूर्ण विधि सहित करने से यह यज्ञ सब से अधिक ऊर्जावान और सकारात्मक माहौल बना देता है। नव चंडी यज्ञ हवन एक असाधारण, अतुलनीय और बड़ा यज्ञ है जो देवी माँ की शक्तियों को आपसे जोड़ती है।
"नवचंडी यज्ञ करने के लाभ"
नवचंडी यज्ञ इतना शक्तिशाली है कि इसको करने के पश्चात से ग्रहों की स्थिति को अपने पक्ष में किया जा सकता है और भाग्य उस व्यक्ति के लिए काम करने लगाता है।
नवचंडी यज्ञ के पूरा होने के बाद व्यक्ति अपने आपको दिव्य वातावरण में पाते हैं और चारों ओर दिव्य शान्ति का आभास होने लगता है। देवी दुर्गा उस व्यक्ति पर आशीर्वाद की वर्षा करती हैं। इस यज्ञ से अपनी कठिन परिस्थितियाँ अनुकूल हो जाती है और जीवनकी उदासी और सभी प्रकार के दुःख दूर हो जाते हैं।
नवचंडी यज्ञ आपके कठिनाइयों और बुरी किस्मत के विरुद्ध एक शक्तिशाली शस्त्र है।
चण्डी यज्ञ कि सम्पूर्ण विधि
नवचंडी यज्ञ एक प्रकार से नव दुर्गा पूजा है। इस पूजा को स्वास्थ्य, धन, शक्ति, समृद्धि, सफलता और कई अन्य कारणों के लिए किया जाता है। नव चंडी यज्ञ सभी कष्टों को हर लेता है। ये यज्ञ करनेसे दुश्मन और बुरे ग्रहों का प्रभाव नष्ट हो जाता है। मनुष्य को जीवन की हर सफलता प्राप्त होती हैं। इस यज्ञ को श्रीगणेश जी को, भगवान शिव को, नवग्रहों को और नव दुर्गा (देवी) को समर्पित करनेसे मनुष्य जीवन धन्य हो जाता है।
नवचण्डी हवन किसी भी दिन व किसी भी समय संपन्न हो सकता है। हवन कुण्ड का पंचभूत संस्कार करें।
सर्वप्रथम कुश के अग्रभाग से वेदी को साफ करें। कुण्ड का लेपन गोबर, गंगाजल आदि से करें। तृतीय संस्कार में वेदी के मध्य बाएं से तीन रेखाएं दक्षिण से उत्तर की ओर पृथक-पृथक(अलग-अलग) खड़ी खींचें, चतुर्थ संस्कार में तीनों रेखाओं से यथाक्रम अनामिका (पहली उंगली) व अंगूठे से कुछ मिट्टी हवन कुण्ड से बाहर फेंकें। पंचम संस्कार में दाहिने हाथ से गंगाजल वेदी में छिड़काव करें।
पंचभूत संस्कार से आगे की क्रिया में अग्नि प्रज्वलित करके अग्निदेव का पूजन करें।
इन मंत्रों से शुद्ध घी की आहुति दें :-
ॐ प्रजापतये स्वाहा। इदं प्रजापतये नमम।।
ॐ इन्द्राय स्वाहा। इदं इन्द्राय नमम।।
ॐ अग्नये स्वाहा। इदं अग्नये नमम।।
ॐ सोमाय स्वाहा। इदं सोमाय नमम।।
ॐ भूः स्वाहा। इदं अग्नेय नमम।।
ॐ स्वः स्वाहा। इदं सूर्याय नमम।।
ॐ भुवः स्वाहा। इदं वायवे नमम।।
ॐ विष्णवे स्वाहा। इदं विष्णवे नमम।।
ॐ ब्रह्मणे स्वाहा। इदं ब्रह्मणे नमम।।
ॐ श्रियै स्वाहा। इदं श्रियै नमम।।
ॐ षोडश मातृभ्यो स्वाहा। इदं मातृभ्यः नमम। ।
"हवन कि सम्पूर्ण विधि"
- नवग्रह के नाम या मन्त्र से आहुति दें। गणेशजी की आहुति दें। दुर्गासप्तशती अथवा नवार्ण मन्त्र से जप करें।
- दुर्गासप्तशती में प्रत्येक मन्त्र के पश्चात स्वाहा का उच्चारण अवश्य करें।
- प्रथम से अंत अध्याय के अंत में पुष्प, सुपारी, पान, कमल गट्टा, 2 लौंग, 2 छोटी इलायची, गूगल व शहद की आहुति दें तथा पांच बार घी की आहुति दें। यह सब अध्याय के अंत की सामान्य विधि है।
- तीसरे अध्याय में "गर्ज-गर्ज क्षणं" में शहद से आहुति दें।
- आठवें अध्याय में "मुखेन काली" इस श्लोक पर रक्त चन्दन की आहुति दें।
- ग्यारहवें अध्याय की आहुति खीर से दें। इस अध्याय से "सर्वाबाधा प्रशमनम्" में कालीमिर्च से आहुति दें। नर्वाण मंत्र से 108 आहुति दें।