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कनकधारा स्तोत्र पाठ

कनकधारा स्तोत्र पाठ

कनकधारा स्तोत्र
धन प्राप्ति का चमत्कारिक उपाय कनकधारा स्तोत्र



आज के समय में मनुष्य के जीवन में पैसा एक ऐसा जरूरत बन गया है जिसको लेकर हर कोई परेशान रहता है, किस तरह से कितना पैसा कमाया जा सके हर कोई इस बात को लेकर परेशान रहता है। अपनी दैनिक जीवन की सुख-सुविधाओं और जीवन को बेहतर बनाने के लिए हर व्यक्ति धन प्राप्ति के लिए हर संभव प्रयास करता है, वह हर कोशिश करता है जिससे वह अधिक से अधिक धन कमा सके

धन प्राप्ति और धन संचय के लिए पुराणों में एक यन्त्र का उल्लेख किया गया है जो धन प्राप्ति के लिए एक चमत्कारी यन्त्र हैं और इसके उपयोग से आप धन प्राप्ति कर सकते हैं। इस यन्त्र का नाम है कनकधारा यन्त्र। कनकधारा की विशेषता यह है कि इसके उपयोग के लिए किसी प्रकार की विशेष माला, जाप, पूजन, विधि-विधान की जरूरत नहीं पड़ती है।

-: कनकधारा स्तोत्र की पूजन विधि :-
यह यन्त्र (कनकधारा यन्त्र) आपको किसी तन्त्र-मन्त्र संबंघी दुकान पर आसानी से मिल जाता है। कनकधारा स्रोत की पूजन की विधि भी अत्यंत सरल हैं। इसके लिए बस आपको इस यंत्र के सामने धूपबत्ती जलाकर कनकधारा स्त्रोत का हिंदी और संस्कृत में पाठ करें। यदि किसी दिन आप ऐसा नहीं कर पाते हैं तो इससे किसी तरह की कोई हानि नहीं होती है, क्योंकि यह सिद्ध मन्त्र होने के कारण चैतन्य माना जाता है। माँ लक्ष्मी की प्रसन्नता के लिए जितने भी यन्त्र हैं, उनमें कनकधारा यन्त्र तथा स्तोत्र सबसे ज्यादा प्रभावशाली एवं अतिशीघ्र फलदायी है।

|| श्रीकनकधारास्तोत्रं ||
अङ्गं हरेः पुलकभूषणमाश्रयन्ती भृङ्गाङ्गनेव मुकुलाभरणं तमालम्।
अङ्गीकृताखिलविभूतिरपाङ्गलीला माङ्गल्यदाऽस्तु मम मङ्गलदेवतायाः ॥१॥

हिंदी अनुवाद:- जैसे भ्रमरी अधखिले पुष्पों से अलंकृत तमाल-वृक्ष का आश्रय लेती है, उसी प्रकार जो दृष्टि श्रीहरि के रोमांच से सुशोभित श्रीअंगों पर निरंतर पड़ता रहता है तथा जिसमें संपूर्ण ऐश्वर्य का निवास है, संपूर्ण मंगलों की अधिष्ठात्री देवी भगवती महालक्ष्मी का वह कृपादृष्टि मेरे लिए मंगलदायी हो।

मुग्धा मुहुर्विदधती वदने मुरारेः प्रेमत्रपाप्रणिहितानि गतागतानि।
माला दृशोर्मधुकरीव महोत्पले या सा मे श्रियं दिशतु सागरसम्भवायाः ॥२॥

हिंदी अनुवाद- जैसे भ्रमरी कमल दल पर मंडराती रहती है, उसी प्रकार जो श्रीहरि के मुखारविंद की ओर बराबर प्रेमपूर्वक जाती है और लज्जा के कारण लौट आती है। समुद्र कन्या लक्ष्मी की वह मनोहर दृष्टिमुझे धन संपत्ति प्रदान करें ।।2।।

विश्वामरेन्द्रपदविभ्रमदानदक्षमानन्दहेतुरधिकं मुरविद्विषोऽपि।
ईषन्निषीदतु मयि क्षणमीक्षणर्द्धमिन्दीवरोदरसहोदरमिन्दिरायाः ॥३॥

हिंदी अनुवाद- जो सम्पूर्ण देवताओं के अधिपति इंद्र के पद का वैभव-विलास देने में समर्थ है, उन मुरारी श्रीहरि को भी आनंदित करने वाली है तथा जो नीलकमल के भीतरी भाग के समान मनोहर जान पड़ती है, उन लक्ष्मीजी के अधखुले नेत्रों की दृष्टि क्षण भर के लिए मुझ पर भी पड़े, ।।3।।

आमीलिताक्षमधिगम्य मुदा मुकुन्दमानन्दकन्दमनिमेषमनङ्गतन्त्रम्।
आकेकरस्थितकनीनिकपक्ष्मनेत्रं भूत्यै भवेन्मम भुजङ्गशयाङ्गनायाः ॥४॥

हिंदी अनुवाद- शेष पर शयन करने वाले भगवान विष्णु की धर्मपत्नी श्री लक्ष्मीजी के नेत्र हमें ऐश्वर्य प्रदान करने वाले हों, जिनकी पु‍तली तथा बरौनियां अनंग के वशीभूत हो, किंतु साथ ही निर्निमेष (अपलक) नयनों से देखने वाले आनंदकंद श्री मुकुन्द को अपने निकट पाकर कुछ तिरछी हो जाती हैं, ।।4।।

बाह्वन्तरे मधुजितः श्रितकौस्तुभे या हारावलीव हरिनीलमयी विभाति।
कामप्रदा भगवतोऽपि कटाक्षमाला कल्याणमावहतु मे कमलालयायाः ॥५॥

हिंदी अनुवाद- जो भगवान मधुसूदन के कौस्तुभमणि-मंडित वक्षस्थल में इंद्र नीलमयी हारावली-सी सुशोभित है तथा उनके भी मन में प्रेम का संचार करने वाली है, वह कमल-कुंजवासिनी कमला की कृपादृष्टि मेरा कल्याण करें, ।।5।।

कालाम्बुदालिललितोरसि कैटभारेर्धाराधरे स्फुरति या तडिदङ्गनेव।
मातुः समस्तजगतां महनीयमूर्तिर्भद्राणि मे दिशतु भार्गवनन्दनायाः ॥६॥

हिंदी अनुवाद- जैसे मेघों की घटा में बिजली चमकती है, उसी प्रकार जो कैटभ-शत्रु श्रीहरि के काली मेघमाला के समान श्याम वक्षस्थल पर प्रकाशित होती है, जिन्होंने अपने आविर्भाव से भृगुवंश को आनंदित किया है तथा जो समस्त लोकों की जननी है, उन भगवती लक्ष्मी की पूजनीय मूर्ति मुझे कल्याण करें ।।6।।

प्राप्तं पदं प्रथमतः किल यत्प्रभावान्माङ्गल्यभाजि मधुमाथिनि मन्मथेन।
मय्यापतेत्तदिह मन्थरमीक्षणार्धं मन्दालसं च मकरालयकन्यकायाः ॥७॥

हिंदी अनुवाद- समुद्र कन्या कमला की वह मंद, अलस, मंथर और अर्धोन्मीलित दृष्टि, जिसके प्रभाव से कामदेव ने मंगलमय भगवान मधुसूदन के हृदय में प्रथम बार स्थान प्राप्त किया था, वही दृष्टि मुझ पर भी पड़े ।।7।।

दद्याद्दयानुपवनो द्रविणाम्बुधारामस्मिन्नकिञ्चनविहङ्गशिशौ विषण्णे।
दुष्कर्मघर्ममपनीय चिराय दूरं नारायणप्रणयिनीनयनाम्बुवाहः ॥८॥

हिंदी अनुवाद- भगवान नारायण की प्रिय लक्ष्मी का नेत्र रूपी मेघ, दयारूपी अनुकूल पवन से प्रेरित हो दुष्कर्म (धनागम विरोधी अशुभ प्रारब्ध) रूपी धूप को चिरकाल के लिए दूर हटाकर विषाद रूपी धर्मजन्य ताप से पीड़ित मुझ दीन रूपी चातक पर धनरूपी जलधारा की वृष्टि(बरसात) करें, ।।8।।

 इष्टा विशिष्टमतयोऽपि यया दयार्द्रदृष्ट्या त्रिविष्टपपदं सुलभं लभन्ते।
दृष्टिः प्रहृष्ट-कमलोदरदीप्तिरिष्टां पुष्टिं कृषीष्ट मम पुष्करविष्टरायाः ॥९॥

हिंदी अनुवाद- विशिष्ट बुद्धि वाले मनुष्य जिनके प्रीति पात्र होकर जिस दया दृष्टि के प्रभाव से स्वर्ग पद को सहज ही प्राप्त कर लेते हैं, पद्‍मासना पद्‍मा की वह विकसित कमल-गर्भ के समान कांतिमयी दृष्टि, मुझे मनोवांछित पुष्टि प्रदान करें।।9।।

गीर्देवतेति गरुडध्वजसुन्दरीति शाकम्भरीति शशिशेखरवल्लभेति।
सृष्टिस्थितिप्रलयकेलिषु संस्थितायै तस्यै नमस्त्रिभुवनैकगुरोस्तरुण्यै ॥१०॥

हिंदी अनुवाद- जो सृष्टि रचना के समय वाग्देवता (ब्रह्मशक्ति) के रूप में विराजमान होती है तथा प्रलय लीला के काल में शाकम्भरी (भगवती दुर्गा) अथवा चन्द्रशेखर वल्लभा पार्वती (रुद्रशक्ति) के रूप में स्थित होती है, त्रिभुवन के एकमात्र पिता भगवान नारायण की उन नित्य यौवना प्रिय श्रीलक्ष्मीजी को नमस्कार है।।10।।

श्रुत्यै नमोऽस्तु शुभकर्मफलप्रसूत्यै रत्यै नमोऽस्तु रमणीयगुणार्णवायै।
शक्त्यै नमोऽस्तु शतपत्रनिकेतनायै पुष्ट्यै नमोऽस्तु पुरुषोत्तमवल्लभायै ॥११॥

हिंदी अनुवाद- हे देवी । शुभ कर्मों का फल देने वाली श्रुति के रूप में आपको प्रणाम है। रमणीय गुणों की सिंधु रूपा रति के रूप में आपको नमस्कार है। कमल वन में निवास करने वाली शक्ति स्वरूपा लक्ष्मी को नमस्कार है तथा पुष्टि रूपा पुरुषोत्तम प्रिया को नमस्कार है।।11।।

नमोऽस्तु नालीकनिभाननायै नमोऽस्तु दुग्धोदधिजन्मभूत्यै।
नमोऽस्तु सोमामृतसोदरायै नमोऽस्तु नारायणवल्लभायै ॥१२॥

हिंदी अनुवाद- कमल के समान कमला देवी को नमस्कार है। क्षीरसिंधु सभ्यता श्रीदेवी को नमस्कार है। चन्द्रमा और सुधा की सहोदरी बहन को नमस्कार है। भगवान नारायण की वल्लभा को नमस्कार है। ।।12।।

सम्पत्कराणि सकलेन्द्रियनन्दनानि साम्राज्यदानविभवानि सरोरुहाक्षि।
त्वद्वन्दनानि दुरिताहरणोद्यतानि मामेव मातरनिशं कलयन्तु मान्ये।। १३।।

हिंदी अनुवाद- कमल के समान नेत्रों वाली हे मातेश्वरी ! आप सम्पतिव सम्पुर्ण इंद्रियों को आनंद प्रदान देने वाली हो,  साम्राज्य देने में समर्थ और सारे पापों को हर लेने के लिए सर्वथा हर लेती हो मुझे ही आपकी चरण वंदना का शुभ अवसर सदा प्राप्त होता रहे।।13।।

यत्कटाक्षसमुपासनाविधिः सेवकस्य सकलार्थसम्पदः।
संतनोति वचनाङगमानसैस्त्वां मुरारिहृदयेश्वरीं भजे।। १४।।

हिंदी अनुवाद- जिनके कृपा-कटाक्ष (तिरक्षी चितवन) के लिए की गई उपासना (आराधना), सेवक (उपासक) के लिए समस्त मनोरथ और संपत्ति का विस्तार करती है, उस भगवान मुरारी की हृदयेश्वरी लक्ष्मी का मैं मन, वचन और काया से भजन करता हूँ।

सरसिजनिलये सरोजहस्ते धवलतमांशुकगन्धमाल्यशोभे।
भगवति हरिवल्लभे मनोज्ञे त्रिभुवनभूतिकरि प्रसीद मह्यम्।। १५।।

हिंदी अनुवाद- हे विष्णु प्रिये! तुम कमल वन में निवास करने वाली हो, तुम्हारे हाथों में नीला कमल सुशोभित है। तुम अत्यंत उज्ज्वल वस्त्र, गंध और माला आदि से सुशोभित हो। तुम्हारी झांकी बड़ी मनोरम है। त्रिभुवन का ऐश्वर्य प्रदान करने वाली देवी, आपकी कृपा मुझ पर हो जाए ।।15।।

दिग्घस्तिभिः कनककुम्भमुखावसृष्टस्वर्वाहिनीविमलचारुजलप्लुताङ्गीम्।
प्रातर्नमामि जगतां जननीमशेषलोकाधिनाथगृहिणीममृताब्धिपुत्रीम्।। १६।।

हिंदी अनुवाद- दिशाओं द्वारा स्वर्ण-कलश के मुख से गिराए गए आकाश गंगा के निर्मल एवं मनोहर जल से जिनके श्री अंगों का अभिषेक (स्नान) होता है, सम्पूर्ण लोकों के अधीश्वर भगवान विष्णु की गृहिणी और क्षीरसागर की पुत्री उन जगज्जननी लक्ष्मी को मैं प्रात:काल प्रणाम करता हूँ।।16।।

कमले कमलाक्षवल्लभे त्वं करुणापूरतरङ्गितैरपाङ्गैः।
अवलोकय मामकिञ्चनानां प्रथमं पात्रमकृत्रिमं दयायाः ॥१७॥

हिन्दी अनुवाद:- हे कमलनयन भगवान विष्णु प्रिय लक्ष्मी! मैं दीन-हीन मनुष्यों में अग्रगण्य हूँ इसलिए आपकी कृपा के स्वभाव का सिद्ध पात्र हूँ। आप उमड़ती हुई करुणा के बाढ़ की तरल तरंगों के सदृश्य कटाक्षों द्वारा मेरे दिशा में अवलोकन कीजिए। 

स्तुवन्ति ये स्तुतिभिरमूभिरन्वहं त्रयीमयीं त्रिभुवनमातरं रमाम्।
गुणाधिका गुरुतरभाग्यभागिनो भवन्ति ते भुवि बुधभाविताशयाः।। १८।।

हिन्दी अनुवाद:- जो मनुष्य इन स्तोत्रों के द्वारा नित्य प्रति वेदत्रयी स्वरूपा तीनों लोकों की माता भगवती रमा (लक्ष्मी) के स्तोत्र पाठ का करते हैं वे भक्तगण इस पृथ्वी पर महागुणी और अत्यंत सौभाग्यशाली होते हैं एवं विद्वजन भी उनके मनोगत भाव को समझने के लिए विशेष इच्छुक रहते हैं।

।। श्रीभगवत्पादशंकरविरचितं कनकधरास्तोत्रं सम्पूर्ण ।।