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गण्डमूल शांति पूजा

गण्डमूल शांति पूजा

क्या है मूल नक्षत्र, कैसे दिखाता है आप पर असर एवं निवारण?


कौन-कौन से मूल नक्षत्र होते हैं और उनका क्या-क्या प्रभाव होता है ?


- मूल ,ज्येष्ठा और आश्लेषा नक्षत्र मुख्य मूल नक्षत्र होते हैं तथा अश्विनी, रेवती और मघा सहायक मूल नक्षत्र हैं।
- इस प्रकार कुल मिलाकर 6 प्रकार के मूल नक्षत्र हैं- अश्विनी, आश्लेषा, मघा, ज्येष्ठा, मूल और रेवती।
- मान्यता है कि पिता को नवजात का मुख नहीं देखना चाहिए जब तक इसकी शान्ति न हो जाए।
- जब बालक का जन्म इन में से किसी भी नक्षत्र में होता है तो बालक के स्वास्थ्य की स्थिति संवेदनशील हो जाती है। - वास्तविकता में केवल नक्षत्रों के आधार पर ही सारा निर्णय नहीं लेना चाहिए।
- पूरी तरह से कुण्डली देखकर ही इसका निर्णय लेना चाहिए।
अगर बच्चे का जन्म मूल नक्षत्र में हुआ है तो इन बातों का ध्यान रखें ?

- सबसे पहले ये जरूर देखें कि बच्चे के स्वास्थ्य की स्थिति क्या है? और किस कारण से उसको समस्या हो रही है।
- पिता और माता की कुण्डली जरूर देखें कि उनका और उनपर इस नवजात शिशु के जन्म का क्या प्रभाव पड़ रहा है।
- इसी तरह से अगर पिता या माता के ग्रह ठीक हैं तो भी चिंता नहीं करनी चाहिए।
- अगर बच्चे का गुरु, चन्द्र मजबूत है तो बच्चे के स्वास्थ्य का संकट खत्म हो जाता है। - कोई भी समस्या संस्करों का खेल है, किसी बच्चे का इसमें कोई दोष नहीं होता है।
- वैसे भी 8 वर्ष के बाद मूल नक्षत्र का प्रभाव विशेष नहीं रहता


क्या उपाय करें अगर मूल नक्षत्र का दुष्प्रभाव पड़ने की सम्भावना हो ?

- जन्म के सत्ताईस दिन बाद वही नक्षत्र आने पर गण्डमूल शान्ति पाठ करवा लें।
- बच्चे के आठ वर्ष तक हो जाने पर नित्य प्रातः माता-पिता "ॐ नमः शिवाय" का जाप करें या फिर बच्चे से करवाएँ।
- अगर बच्चे कि उम्र 8 वर्ष से अधिक हो तो मूल नक्षत्र की शांति की जरूरत नहीं होती है।
- अगर मूल नक्षत्र के कारण बच्चे का स्वास्थ्य कमजोर रहता है तो बच्चे की माता को पूर्णिमा का व्रत करना चाहिए ।

यहाँ पर यह बात ध्यान देने योग्य है कि गण्डमूल दोष निवारण के लिए की जाने वाली पूजा जातक की अनुपस्थिति में भी कराई जा सकती है तथा जातक के व्यक्तिगत रूप से उपस्थित न होने की स्थिति में, इस पूजा में जातक की तस्वीर अर्थात फोटो का प्रयोग भी किया जा सकता है जिसके साथ ही जातक के नाम, उसके पिता के नाम तथा उसके गोत्र आदि का प्रयोग करके जातक के लिए इस पूजा का संकल्प किया जा सकता है। इस संकल्प में यह कहा जाता है कि जातक किसी कारणवश इस पूजा के लिए व्यक्तिगत रूप से उपस्थित होने में सक्षम नहीं है जिसके चलते पूजा करने वाले पुरोहितों (पंडित जी) में से ही एक पुरोहित जातक के लिए जातक के द्वारा की जाने वाली सभी प्रक्रियाओं को पूरा करने का संकल्प लेता है तथा उसके पश्चात पूजा के समाप्त होने तक, वह पूरा फल संकल्प के माध्यम से जातक को प्रदान किया जाता है। प्रत्येक क्रिया को करते समय जातक की तस्वीर अर्थात फोटो को उपस्थित रखा जाता है तथा उसे सांकेतिक रूप से जातक ही मान कर क्रियाएं की जातीं हैं। उदाहरण के लिए यदि जातक के स्थान पर पूजा करने वाले पुरोहित को भगवान शिव को पुष्प अर्थात फूल अर्पित करने हैं तो वह पुरोहित पहले पुष्प धारण करने वाले अपने हाथ को जातक के चित्र से स्पर्श करते हैं तत्पश्चात उसी हाथ से पुष्पों को भगवान शिव को अर्पित करते हैं तथा इसी प्रकार सभी क्रियाएं पूरी की जातीं हैं। जातक के व्यक्तिगत रूप से अनुपस्थित रहने की स्थिति में 27 अथवा 108 विभिन्न स्तोत्रों से लाये गये जल, मिट्टी तथा पत्तों का अभिमंत्रित मिश्रण या तो जातक को उसके स्थान पर भेज दिया जाता है अथवा इस मिश्रण के साथ जातक के चित्र अथवा उसकी प्रतिमा बनाकर उसे स्नान करवाया जाता है। यहां पर यह बात ध्यान देने योग्य है कि व्यक्तिगत रूप से अनुपस्थित रहने की स्थिति में भी जातक को पूजा के आरंभ से लेकर समाप्त होने की अवधि तक पूजा के लिए निश्चित किये गए नियमों का पालन करना होता है भले ही जातक संसार के किसी भी भाग में उपस्थित हो। इसके अतिरिक्त जातक को उपर बताई गई विधि के अनुसार अपने आप को इस पूजा के साथ मानसिक रूप से संकल्प के माध्यम से जोड़ना भी होता है जिससे इस पूजा के अधिक से अधिक शुभ फल जातक को प्राप्त हो सकें।